महुआ के प्रधान द्वारा पेरियार लालाजी सिंह यादव के बारे में बताया गया

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फूलपुर/आजमगढ़ जिले में महुआ के प्रधान के द्वारा पेरियार लालाजी सिंह यादव के बारे में बताया गया पेरियार ललई सिंह सन् 1950 में सरकारी सेवा से निवृत्त होने के बाद से अध्ययन में जुट गए,चूंकि उनका परिवार पहले से आर्य समाज का अनुयायी था,आर्य समाज का लेखन हिंदू धर्म का सुधरा हुआ रूप था,उसके अनुसार ईश्वर है ,किंतु उसका अवतार नहीं होता,राम -कृष्णादि महापुरुष थे अवतार नहीं,देवता , पृथ्वी , जल , वायु , आकाश , अग्नि , पांचों यम , पांचों नियम , वृक्षादि है,हरिद्वार तीर्थ नहीं हांडों की पैड़ी बन गई है,कांशी करवट ( कांशी में गंगा में जाकर मरना ) अंधविश्वास है,जगन्नाथपुरी के हंडो में ऊपर के चावल पक जाना पाखंड है,चारों वेद ही ग्रंथ हैं अन्य कोई नहीं,वर्ण – सिद्धांत , जातिप्रथा , जन्मजात न होकर कर्म , गुण – स्वभाव के आधार पर होती है,ऊंच – नीच , छुआछात व्यर्थ है , सभी इंसान हैं आदि – आदि,इस आधार से ललई सिंह को आर्य समाज का धर्म भा गया था और वे जनेऊ धारण करते थे , किंतु फिर भी उनकी प्यास अधूरी थी,उनके मन में नया कुछ जानने की उत्कंठा थी,इसलिए स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा रचित बहुचर्चित ग्रंथ ‘ सत्यार्थ प्रकाश ‘ का बार – बार अध्ययन किया करते थे ,किंतु फिर भी संतोष नहीं मिल रहा था,उन्हें स्वामीजी द्वारा मान्य नियोग प्रथा ( पति के विदेश जाने पर अन्य मित्र रिश्तेदार से संतान उत्पन्न करना ) की बात खटकती थी,दूसरी बात हिंदू लोग ,श्रेष्ठ ब्राह्मण द्वारा स्थापित आर्य समाज के जनेऊ धारण प्रथा और गुण स्वभाव कर्म पर आधारित वर्ण – सिद्धांत को मानने को तैयार न थे,तीसरी बात उन्हें अपने पिता के साथ घटित हिंदुओं द्वारा जनेऊ तोड़ने की घटना बार – बार याद आती थी,
इससे यादव जी का मन आर्य समाज से विचलित हो गया •
पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने हिंदू ग्रंथों का भी अध्ययन शुरू किया,जब उन पर पारखी दृष्टि डाली तो आडम्बर ,अंधविश्वास , जातिवाद ,भाग्य , ईश्वर और अवतार की श्रद्धा निरर्थक नजर आई ,इस चिंतन से उन्होंने धर्म परिवर्तन करने का मन बना लिया फिर इस्लाम धर्म का अध्ययन किया,उसमें भी उन्हें कुछ खास सार नहीं दिखा ,उसमें भी आंतरिक रूप से जातिवाद उन्हें पनपता मिला ,तब ललई सिंह ने सिख धर्म की ओर रुख मोड़ा और अध्ययन किया , परंतु वहां भी कुछ भेद देखने को मिला,यहां भी उनकी शंकाओं का निवारण न हो सका,इसके लिए उत्तरोत्तर उनका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर बढ़ता गया, उसका अध्ययन करने पर मन की वेदना शांत होती दिखी, अब वे पूर्णतः साहित्य और समाज को समर्पित हो गए,यह वह अवसर था जब संपूर्ण भारत में संविधान के निर्माता , दलितों और नारी के मुक्तिदाता बाबासाहेब डॉ .भीमराव आंबेडकर जी द्वारा चलाया गया धार्मिक ,सामाजिक तथा राजनीतिक आंदोलन का कार्य बुलंदियों पर था,उन आंदोलनों का प्रभाव पेरियार ललई सिंह यादव जी के ऊपर व्यापक रूप से पड़ा,उनके मन में जो वेदना थी वह अब शांत होने लगी,उन्हें ऐसा लगा कि अब हमको कुशल डॉक्टर मिल गया है,अब मैं पूर्णरूप से ठीक हो जाऊंगा,ऐसी सोच बनाकर दृढ़संकल्प के साथ उनकी आस्था अब तूफान से तेज बौद्ध धर्म की ओर बढ़ गई,इसी समय डॉ .आंबेडकर जी के नेतृत्व में नागपुर में विशाल धम्म परिवर्तन समारोह 14 अक्टूबर , 1956 को संपन्न हुआ था, किंतु कई बीमारियों से ग्रस्त रहने के कारण मा .ललई सिंह जी उस ऐतिहासिक धम्मदीक्षा समारोह में सम्मिलित नहीं हो सके ,इससे उन्हें अपार दुख हुआ,लेकिन दु:ख के साथ ही साथ उन्होंने मन में एक प्रतिज्ञा की कि बोधिसत्त्व बाबासाहेब डॉ .आंबेडकर जी के महान धर्मगुरु भदंत चंद्रमणि महाथेरा जी से दीक्षा ग्रहण करनी है,उन्हीं धर्मगुरु से मैं भी दीक्षा लूंगा और अपने जीवन को भव्य बनाऊंगा.
ललई सिंह जी की एक बहुत बड़ी विशेषता थी कि वह जो कहते थे उसे करके दिखाते थे,वे इरादे के पक्के थे ,टस से मस नहीं होते थे, इस प्रकार वे कार्य करते रहे ,आगे बढ़ते रहे और अपने लक्ष्य की टोह में भी लगे रहे,
उन्होंने इस संबंध में कई बार मा . भिक्खु महाथेरा भदंत चंद्रमणि जी से संपर्क साधा,आखिरकार वह समय आ ही गया जब 21 जुलाई ,1967 को महान त्यागी पेरियार ललई सिंह जी ने कुशीनगर पहुंचकर पूज्य धर्मगुरु भदंत चंद्रमणि महाथेरा जी से विधिवत बौद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहण की,अब महान पेरियार ललई सिंह का किया हुआ संकल्प पूरा हो गया, इसके बाद वे चीवरधारी बौद्ध भिक्खु बन गए,अपनी कई लिखी हुई कृतियां उन्होंने भदंत चंद्रमणि महाथेरा जी को समर्पित कीं,भदंत चंद्रमणि महाथेरा के अनन्य शिष्य महापंडित भदंत ज्ञानेश्वर महाथेरा कुशीनगर का भी वह आजीवन बड़ा सम्मान करते रहे,और समय – समय पर सहयोग भी करते रहे भिक्खु संघ के प्रति वह हर पल सम्मान रखते रहे,बौद्ध भिक्खु ललई सिंह जी अपने आंदोलन और अपने कार्य को आगे बढ़ाते हुए डॉ .क्षत्रपाल सिंह यादव ग्राम महमूदपुर जिला सीतापुर उत्तर प्रदेश ,चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु , शिवदयाल चौरसिया और डॉ . गयाप्रसाद प्रशांत जैसे कर्मठ तथा निष्ठावान समाजसेवी लोगों से मिले,यह वह अवसर था जब धम्म सभाओं और दीक्षा समारोह का दौर जोरों पर चल रहा था,सन् 1978 में भिक्खु ललई सिंह जी जे.एन.आदित्य ,प्रमुख महासचिव भारतीय बौद्ध संगठनों की महापरिषद के संपर्क में आए,उस समय आदित्य भारतीय बौद्ध महासभा जिला कानपुर उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष थे, पेरियार ललई सिंह जी ने साहित्य आदि के लिए ‘ पेरियार ललई सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट ‘ पंजीकृत कराया और उसकी वसीहत जे.एन. आदित्य जी को सौंप दी,अब वह देश के बहुचर्चित महापुरुषों की लाइन में गिने जाने लगे-
संवाददाता सोनू कुमार

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