संवाद केमास न्यूज़ :अभी तक प्राप्त वैज्ञानिक सोधों से सिद्ध हो चुका है कि मानव की उत्पत्ति पुरुष शुक्राणु और स्त्री के अंडे के (प्राकृतिक या कृत्रिम) गर्भाधान से स्त्री के गर्भाशय या किराए के गर्भाशय में ही हो सकता है और किसी तरीके से नहीं।” अतः अन्य प्रकार से मानव का जन्म मात्र कल्पना/अंधविश्वास/ अप्राकृतिक है। इसीलिए हम आजीवक लोग अंधविश्वास और पाखंड से मुक्त रहते हैं। डार्विन के क्रमिक विकास के सिद्धांत से पूर्ण रूप से स्पष्ट हो चुका है कि मानव की प्रारंभिक उत्पत्ति किसी अदम/ हौआ जैसे मानव से नहीं बल्कि निर्जीवों से जीवों में बदलने की प्रक्रिया द्वारा एक कोशिकीय जीव से मानव के अनगिनत कोशिकाओं के रूप में लाने के क्रमिक विकास से हुआ। मानव के शरीर में मौजूद अपेंडिक्स ( जिसका कोई काम नहीं है) आज भी सबूत है कि हम पहले जुगाली करने वाले जीव थे।
स्त्री की कोशिका (अंडा) में X-X क्रोमोजोन और पुरुष कोशिका (शुक्राणु) में X-Y क्रोमोजोन होते हैं। स्त्री के X और पुरुष के X क्रोमोजॉन के मिलने से स्त्री और स्त्री के X और पुरुष के Y क्रोमोजोन के मिलने से पुरुष पैदा होता है। अन्य प्रकार के बच्चों की उत्पत्ति एक विकृति है, प्राकृतिक नहीं है। यह विकृति गर्भ में पलने वाले भ्रूण पर निरंतर पड़ने वाली बाहरी गतिशील विरोधी ताकतों के प्रभाव (reaction) के कारण होती है। जिसका प्रवेश हमारे पांच ज्ञानेंद्रियों के रास्ते ही होता है। यानी इस विकृति से बचा जा सकता है। इसके लिए हम विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों का अध्ययन कर रहे हैं। इस प्रकार की विकृति से बचाने में होम्योपैथी से ज्यादा अच्छा विज्ञान अभी तक मौजूद नहीं है।
अध्यक्ष,
आजीवक कल्याण एवं विकास अनुसंधान ट्रस्ट (AWDRT)