संविधान का अनुच्छेद 25 हमें क्या अधिकार देता है

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भारत का संविधान इस अनुच्छेद में जिस धर्म की बात की गई है वह संविधान की मूलभावना के अनुरूप होना चाहिए। अर्थात संविधान में धर्म की व्याख्या भले ही सीधे तौर पर लिखकर न की गई हो परंतु पूरे संविधान को पढ़ने और समानता के सिद्धांत आगे बढ़ाने के उद्देश्य से ही कहा गया है। वह धर्म संविधान द्वारा मान्य नहीं जो भेदभाव करे, ऊंच नीच बनाए, महिला पुरुष में भेदभाव करे। समाज को जाति पांति में बांटे। प्रकृति , नदी जल श्रोतो, मृदा, हवा आदि को गंदा करें, लोगों की बुद्धि को नष्ट करके उनकी सोचने समझने की शक्ति को नष्ट करे, लोगों से उनकी आजीविका छीनकर उनके निकम्मा, भिखारी बनाए, लूट, ठगी, छल, प्रपंच आदि से किसी के संसाधन को अपना बना ले वो भी काल्पनिक स्वर्ग, जन्नत, मोक्ष, कैवल्य, निर्वाण आदि के लिए।

अर्थात संविधान में जो धर्म है उसका मतलब उन सभी कार्यों से है जिससे सभी प्राणियों का हित होता है। वो भी इसी जन्म में न की किसी और।

अध्यक्ष,
आजीवक कल्याण एवं विकास अनुसंधान ट्रस्ट (AWDRT)

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