पत्रकारों के हित में कानून को लागू करने के सवाल का जवाब में चुप्पी साधे डिप्टी सीएम डॉ दिनेश शर्मा

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जौनपुर-शाहगंज सरपतहां क्षेत्र के अंतर्गत विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक और लाभार्थियों को प्रमाण पत्र वितरित करने पहुंचे प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा पत्रकारों के हित में सुरक्षा कानून लागू करने के सवाल पर जवाब दिए बिना अनसुना कर दिया। आम जनता की समस्याओं को शासन प्रशासन तक पहुंचाने के साथ-साथ आम जनमानस के बीच न्यूज़ कवरेज करके देश के लोकतंत्र में सभ्य समाज को नई दिशा देने वाले देश के चतुर्थ स्तंभ अर्थात पत्रकारों की नित्य प्रति हत्या, उत्पीड़न, अन्याय, अत्याचार अब आम बात हो गई है। क्योंकि यदि पत्रकारों को हत्या, अन्याय ,अत्याचार ,फर्जी मुकदमे आदि का डर सताएगा तो वह निर्भीक होकर सच्ची और निष्पक्ष पत्रकारिता कैसे कर पाएंगे? पत्रकारों की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में सवाल पूछने पर मौन उपमुख्यमंत्री यह साबित करना चाहते हैं कि उन्हें पत्रकारों की सुरक्षा की कोई परवाह नहीं है वैसे भी पत्रकारों को बैठने के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं किया गया पत्रकार बेचारे कड़ी धूप में जनमानस के साथ पसीना बहाते रहे । बाईट लेने के दौरान विभागीय पुलिस ने भी पत्रकारों के साथ अभद्रता का व्यवहार किया। ऐसा लगता है कि सिर्फ देशभक्ति का मुखौटा पहनकर सिर्फ जनता को बरगलाने की बात है लेकिन अब जनता समझ गई है कि जब सम्मानित पत्रकारों का सम्मान नहीं तो फिर जनता का कहा कहना कुछ और करना कुछ और तो हैरान कर देने वाली बात है कि जो देश के लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ को सुरक्षित नहीं देखना चाहता वह आम जनमानस की सुरक्षा क्या खाक करेगा? ऐसे गैर जिम्मेदार व्यक्ति की तरह यदि एक जिम्मेदार व्यक्ति यदि पत्रकारों की सुरक्षा पर चुप रहेगा तो पत्रकार निडर होकर समाज में पारदर्शितापूर्ण पत्रकारिता कैसे कर पाएंगे? आखिर पत्रकारों को सुरक्षित रखना और उनके हित की बात करना क्या सरकार के एजेंडे में शामिल नहीं है? क्या सरकार का कोई उत्तर दायित्व नहीं है कि पत्रकार भी सुरक्षित रहें? समाज को सच का आईना दिखाने वाले पत्रकारों की नित्य प्रति हत्या, उत्पीड़न सहित तमाम आवश्यकताओं के अभाव में क्या अब सरकार इसी दयनीय दशा पर बने रहने देना चाहती है? मीडिया कर्मियों की सुरक्षा के बारे में उप मुख्यमंत्री ने कोई जवाब देना उचित नहीं समझा और उन्हें मौत के कुएं में ढकेला जाता रहेगा क्या पत्रकार भी अपनी मौत अपने साथ अन्याय और अत्याचार को अपनी किस्मत समझ कर अपने आप को कोसते रहेंगे या पत्रकारों की हत्या और उत्पीड़न के लिए सरकार को जिम्मेदार मान कर एक जागरूकता हर मीडिया कर्मियों के अंदर आएगी या फिर पत्रकार अपनी सुरक्षा के बारे में सरकार के जिम्मेदार लोगों से सवाल पूछना बंद कर दें क्या पत्रकारों को सुरक्षित रहने का अधिकार नहीं है? इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि सरकार पत्रकारों की सुरक्षा व्यवस्था पर इसी प्रकार से संवेदनहीन और गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाती रही तो देश में स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण कैसे होगा और देश की मासूम जनता जो अन्याय, अत्याचार और उत्पीड़न की शिकार हो जाती है जिसकी समस्याओं को नहीं सुना जाता है उसकी आवाज को बुलंद करने वाले पत्रकारों को मौत के घाट उतरते हुए सरकार इसी प्रकार से देखती रहेगी अथवा सभी पत्रकारों और पत्रकार संगठनों को हत्या अन्याय और अत्याचार उत्पीड़न मंजूर है? इससे पहले भी उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी इलाहाबाद के सराय इनायत के पत्रकार की हत्या के संबंध में प्रश्न पूछने पर गैर जिम्मेदाराना और विवादित बयान दिए कि पत्रकारिता छोड़ दो नेतागिरी करो ।

तहसील शाहगंज संवाददाता विनोद कुमार

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