बडोरा ख्वाजा पुर में मनाया गया संत गाडगे परिनिर्वाण दिवस

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सुल्तानपुर/सुल्तानपुर जिले के विकासखंड अखंड नगर में संत गाडगे का 67 वां परिनिर्वाण दिवस बड़ोरा ख्वाजा पुर निवासी भगवानदीन यादव के घर पर मनाया गया ।इस कार्यक्रम में गांव के तमाम लोग महिला पुरुष उपस्थित होकर अपना सहयोग दिया ।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गाडगे मिशन के संस्थापक, पूर्व अध्यापक व बौद्ध आचार्य
बृजलाल कनौजिया सुल्तानपुर रहे ।कार्यक्रम में गाडगे मिशन के जिलाध्यक्ष त्रिवेणी प्रसाद कनौजिया सुल्तानपुर, गाडगे मिशन के सुल्तानपुर जिले के जिला सचिव सुभाष चौधरी तथा गाडगे मिशन के सलाहकार कादीपुर राम सुरेमणि कनौजिया तथा डॉक्टर बृजेश यादव कमियां मौजूद रहे। कार्यक्रम में निर्मल बौद्ध अध्यक्ष बुध्दांकुर भीमज्योत सेवा संस्थान मीरपुर प्रतापपुर तथा हीरालाल बौद्ध पूर्व इंजीनियर रेलवे विभाग भी मौजूद रहे ।कार्यक्रम की शुरुआत सरिता पुत्री श्रीराम ने बुद्ध रूपी दीपक जलाकर किया ।सभी उपस्थित जनसमूह ने बाबा साहब, तथागत बुद्ध और संत गाडगे के चित्र पर पुष्प अर्पण कर कार्यक्रम को सफल बनाया तथा त्रिसरण पंचशील ग्रहण किया ।कार्यक्रम में पूर्व अध्यापक बृजलाल कनौजिया जी ने बताया कि संत गाडगे एक सामाजिक, सुधारवादी , स्वच्छता पसंद और शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने वाले संत थे। उन्होंने 29 वर्ष की अवस्था में अपना घर बार छोड़कर हाथ में झाड़ू ले लोगों के लिए लोगों को जागृत करने के लिए पूरे गांव गांव भटकते रहे और लोगों को जागृत करते रहे। उन्होंने लोगों की सुख सुविधा के लिए गौशालाएं, धर्मशालाएं तथा चिकित्सालय भी बनवाए ।उन्होंने बताया कि संत गाडगे ने कहा कि आपके पास खाने के लिए नहीं है ,आधी रोटी खाओ ,पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं आधे कपड़े पहनो ,खाने के लिए बर्तन नहीं है तो हाथ में लेकर खाओ लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ाओ ।उन्होंने बताया कि संत गाडगे की पहचान उनकी वेशभूषा से हो जाती थी।उनके हाथ में एक डंडा, हाथ में झाड़ू और मिट्टी का गड़गा मौजूद रहता था जिसके कारण उनको गाडगेबाबा कहा जाता था। वह जहां भी जाते उसी गडगे में खाना खाते ,पानी पीते और उसे टोपी के रूप में अपने सर पर भी रख लेते, और जहां कहीं भी लोगों के बीच जागृति गीत गाते तो उस गडगे को बाजे (डफली) के रूप में भी प्रयोग कर लेते। संत गाडगे का जीवन एक त्यागी जीवन था। संत गाडगे बुद्ध के बहुत ही कट्टर अनुयाई थे । संत गाडगे को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर बहुत मानते थे। संत गाडगे और बाबा साहब में बहुत ही अटूट संबंध था। उन्होंने बताया कि जब डॉक्टर बाबा साहब का महापरिनिर्वाण हुआ तो संत गाडगे, बाबा साहब के उस परिनिर्वाण के दुख को बर्दाश्त नहीं कर सके । और 14दिन बाद संत गाडगे जी का भी परिनिर्वाण हो गया।6 दिसंबर1956 को बाबा साहब का परिनिर्वाण हुआ और 20 दिसंबर1956 को संत गाडगे ने अपना देह त्याग दिया ।कार्यक्रम के आयोजक भगवान दीन यादव ने बताया जब से मुझे संत गाडगे के बारे में पता चला, बुद्ध के बारे में पता चला और बाबा साहब के बारे में पता चला, मैंने किताबों को पढ़ा उनके बारे में जाना तो मेरा मन उनके प्रति अनुग्रहीत हो गया। और तब से मैं संत गाडगे बाबा का परिनिर्वाण दिवस हर साल मनाता हूं और मनाता रहूंगा। उन्होंने कहा कि लोगों को अपने महापुरुषों के प्रति जागरूक होना चाहिए और उनके बताए हुए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। कार्यक्रम में पूर्व दरोगा रामदीन कनौजिया ,चंद्रेश कुमार, रविंद्र कुमार ,निरंजन मिस्त्री, मुंशीलाल सहित सैकड़ों लोग स्वामित्व शामिल रहे ।

के मास न्यूज सब ब्यूरो सुल्तानपुर

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