सामाजिक सरोकारों से भटक रही पत्रकारिता

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जौनपुर

यूं तो पत्रकारिता समाज का दर्पण होती है ऐसी अवधारणा युगों- युगों से रही है।आदिकाल की पत्रकारिता के जन्मदाता देवर्षि नारद से लेकर, गुरु रविदास, गुरु नानक देव, महर्षि वाल्मीकि, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, तुलसीदास ,मीराबाई, स्वामी विवेकानंद ,भगवान श्रीकृष्ण, संजय आदि सिरमौर रहे हैं।आधुनिक समय में पंडित जुगल किशोर शर्मा,जेम्स आगस्टस हिक्की, महात्मा गांधी, राजा राममोहन राय ,लोकमान्य तिलक, भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर तमाम ऐसे संवाददाता व पत्रकार हुए हैं जिन्होंने अपनी साफ-सुथरी निष्पक्ष और जनहित के मुद्दों से जुड़ी पत्रकारिता के द्वारा समाज में एक व्यापक स्तर पर परिवर्तन का दौर स्थापित किया। वारेन हेस्टिंग्स गवर्नर जनरल से लेकर ब्रिटिश महारानी यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय आपातकाल की स्थिति में भी लोगों ने पत्रकारिता नहीं छोड़ी और समाज के मुद्दे इनकी पत्रकारिता के प्रमुख उद्देश्य थे। उपरोक्त संवाददाताओं, वरिष्ठ पत्रकारों और विद्वानों ने पत्रकारिता का एक नया आदर्श और कीर्तिमान स्थापित किया है जिनके पद चिन्हों पर हर कोई चलकर ही समाज का उत्थान कर सकता है और भारत राष्ट्र को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में ला सकता है।भ्रष्टाचार और सामाजिक कुरीतियों का विरोध मीडिया जगत में हमेशा होता रहा है जिन पत्रकारों और मीडिया संस्थानों में जमीर जिंदा रहा ऐसे लोग देश और समाज का हित सोचकर निष्पक्ष पत्रकारिता करते रहे। आधुनिक समय भौतिकता का है जिसमें हर कोई अपने स्वार्थ में अंधा है। उन्हें जनता की पीड़ा, समाज के वंचितों, शोषितों की व्यथा और सामाजिक सरोकारों से कोई लेना देना नहीं है। स्वार्थ के इस युग में आज पत्रकारिता एक नये विकृत मोड़ के दौर से गुजर रही है। मीडिया का जो एजेंडा रहा है हमेशा से उसमें देश और समाज के हित का समावेश अवश्य रहा है।

आज की पत्रकारिता धीरे- धीरे व्यवसायिक रूप धारण कर चुकी है जिसके परिणाम स्वरूप आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस या प्रेस वार्ता पूर्व नियोजित साबित हो रही है जिसके आधार पर वाइट देने वाले संबंधित अधिकारी, नेता -मंत्री सरकार के लोग एक श्रीमद् भागवत कथा के कथावाचक साबित हो रहे हैं।ऐसे कथावाचक के सामने उपस्थित पत्रकार श्रेष्ठ और आदर्श श्रोता साबित हो रहे हैं।आज की मीडिया के उद्देश्य अब तो लिफाफे में बंद होकर उसी लिफाफे तक ही सीमित हो जा रहे हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाला अधिकारी या नेता -मंत्री अब केवल एक श्रेष्ठ कथावाचक और पत्रकार एक उत्कृष्ट श्रोता बनकर रह गया है।वक्ता और श्रोता दोनों वही कार्य कर रहे हैं जिसमें दोनों का हित है इसलिए इन दोनों के क्रियाकलाप एक कहावत-‘ अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता’ वाली चरितार्थ हो रहे हैं।आज के दौर में प्रेस कॉन्फ्रेंस के समय पत्रकारों के पास ना तो कोई तर्कसंगत प्रश्न है और ना ही कोई न्याय संगत मुद्दा वह केवल वही दिखाते हैं जिसे वक्ता चाहता है। यदि आधुनिक पत्रकारिता को हम एडजस्टमेंट जर्नलिज्म अथवा कंप्रोमाइज जर्नलिज्म कहें तो कोई अनुचित नहीं होगा। ऐसे लोग जो पत्रकारिता को समाज का आईना ना समझ कर इसे केवल दलाली के तराजू पर तौलना चाहते हैं उन्हें नसीहत है कि पूर्ववर्ती पत्रकारों और उनके सिद्धांतों को अमल में लाना चाहिए और उनके बताए गए मार्गों का अनुसरण करना चाहिए ताकि पत्रकारिता का जो सबसे बड़ा उद्देश्य है समाज हित का उद्देश्य पूर्ण हो सके और राष्ट्र का चौमुखी विकास हो सके।आजकल की गोदी मीडिया ने सामाजिक सरोकारों को भूल कर चाटुकारिता का नया अध्याय शुरू कर दिया है जिसके परिणाम स्वरूप देश का विकास रसातल में चला जाएगा।

लेखक- राम नरेश प्रजापति वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग एम ए द्वितीय सेमेस्टर छात्र जौनपुर, उत्तर प्रदेश –

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