न्यायालय के आदेश की धज्जियां उड़ाने का आरोप, चौकी प्रभारी पर मिलीभगत का संदेह

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वैजापुर गांव में दबंगई के आगे कानून बेबस, पत्रकारों पर भी दबाव; पीड़ित ने एसपी और डीएम से लगाई न्याय की गुहार

जौनपुर- 
कानून की रक्षा करने वाले ही यदि अदालत के आदेश की अनदेखी करें, तो आम जनता को न्याय कहाँ से मिलेगा? सरायख्वाजा थाना क्षेत्र के वैजापुर गांव से ऐसा ही एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जहाँ न्यायालय के आदेश के बावजूद दबंगई के बल पर भवन निर्माण जारी रहा। पीड़ित मूलचन्द ने चौकी प्रभारी शिकारपुर पर मिलीभगत का गंभीर आरोप लगाते हुए पुलिस अधीक्षक और जिलाधिकारी से हस्तक्षेप की मांग की है।

पीड़ित का कहना है कि भूमि विवाद से संबंधित दीवानी मुकदमा (संख्या 446/09) में अदालत ने हाल ही में उनके पक्ष में फैसला सुनाया था। बावजूद इसके विपक्षी रामजियावन ने खुलेआम आदेशों की अनदेखी करते हुए मकान पर छत डालने की तैयारी की। मूलचन्द का आरोप है कि उन्हें पहले ही सूचना मिली थी कि 1 अक्टूबर की सुबह निर्माण कार्य कराया जाएगा, और वही हुआ। सुबह लगभग 7:30 बजे ही गाटर–पटिया रखवाने का काम शुरू कर दिया गया।

सूचना पाकर पुलिस 100 डायल की गाड़ी मौके पर पहुँची, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से निर्माण कार्य रुका नहीं। मूलचन्द का कहना है कि यह सब चौकी प्रभारी की शह और मिलीभगत से हो रहा है। यदि पुलिस निष्पक्ष होती तो न्यायालय का आदेश लागू कराना मुश्किल नहीं था।

मामला यहीं तक सीमित नहीं रहा। घटना की जानकारी पाकर कवरेज के लिए पहुँची मीडिया टीम पर भी दबाव बनाने की कोशिश की गई। खुद को पत्रकार और संपादक बताने वाले एक व्यक्ति ने फोन पर धमकी भरे अंदाज़ में सवाल किया कि आखिर यह खबर क्यों कवर की जा रही है। इतना ही नहीं, मौके पर मौजूद पत्रकारों की फोटो और वीडियो भी खिंचवाए गए। इस रवैये ने न केवल मीडिया की स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा किया, बल्कि घटनास्थल पर मौजूद पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर चिंता जताई गई।

पीड़ित मूलचन्द का कहना है कि यदि न्यायालय के आदेश को दबंगई और मिलीभगत के दम पर रौंदा जाएगा, तो आम नागरिक कहाँ जाएगा? उन्होंने कहा कि पुलिस और प्रशासन की चुप्पी जनता के भरोसे को तोड़ रही है।

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या जिला प्रशासन और पुलिस अधीक्षक इस मामले में सख्त कदम उठाएंगे या फिर यह मामला भी महज कागज़ों में दबकर रह जाएगा? गाँव के लोगों की नज़रें प्रशासन पर टिकी हैं, क्योंकि यदि न्यायालय के आदेश भी कागज़ी साबित होने लगे, तो न्याय की उम्मीद करना बेमानी हो जाएगा।

पीड़ित ने जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक से गुहार लगाई है कि न केवल निर्माण कार्य रोका जाए बल्कि जिम्मेदार अधिकारियों और दबंगों पर सख्त कार्रवाई हो। साथ ही, पत्रकारों पर दबाव बनाने की कोशिश की भी जांच होनी चाहिए। जौनपुर का यह मामला सिर्फ एक परिवार का संघर्ष नहीं, बल्कि यह कानून और न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर भी बड़ा सवाल है।

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