ग्राम प्रधान और सचिव ने एक-दूसरे पर डाली जिम्मेदारी, शराब के नशे में पाए गए कर्मचारी
खुटहन, जौनपुर – उत्तर प्रदेश सरकार जहां गौशालाओं के रखरखाव और गायों की सुरक्षा के लिए प्रति पशु प्रतिदिन लगभग 40 रुपये खर्च करने का दावा करती है, वहीं जौनपुर जिले की खुटहन ब्लॉक अंतर्गत डीहिया गांव स्थित गौशाला की वास्तविक तस्वीर बेहद भयावह निकला। रविवार को गौशाला के बारे में जानकारी मिलने पर संकल्पना सामाजिक सेवा संस्था और मीडिया टीम गांव में पहुँची तो यहाँ की लापरवाही उजागर हुई है, जिसने सरकार की योजनाओं की जमीनी हकीकत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
संगठन और मीडिया टीम जब मौके पर पहुंची तो देखा कि लगभग पाँच पशु मरणासन्न हालत में पड़े हुए थे। उनके शरीर के कई हिस्सों पर गंभीर संक्रमण और घाव साफ दिखाई दे रहे थे। कुछ पशुओं की आँखों में भी बीमारी के लक्षण दिखे। यह दृश्य न केवल व्यवस्था की पोल खोल रहे थे बल्कि यह भी दर्शाता है कि पशुओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर किया जा रहा खर्च कहीं और ही जा रहा है।
चारे की स्थिति भी बेहद खराब पाई गई। सरकार द्वारा हरे चारे की व्यवस्था की बात कही जाती है, लेकिन यहाँ केवल भूसा ही डाला गया था। पशु कुपोषण और भूख से जूझते हुए अधमरी अवस्था में पड़े मिले। यही नहीं, गौशाला की देखभाल के लिए नियुक्त कुछ कर्मचारी शराब के नशे में धुत पाए गए। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या वास्तव में गौशाला पशुओं की सुरक्षा के लिए बनाई गई है या फिर यह सिर्फ सरकारी धन के दुरुपयोग का अड्डा बन चुकी है।
जब इस मामले पर ग्राम प्रधान से फोन पर सवाल किया गया तो उन्होंने जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए सारा दोष सचिव पर मढ़ दिया। वहीं सचिव ने जवाब में प्रधान पर ही लापरवाही का आरोप लगा दिया। दोनों के बीच जिम्मेदारी से बचने की रस्साकशी ने यह साफ कर दिया कि गौशाला में पशुओं की दुर्दशा की जिम्मेदारी कोई लेना नहीं चाहता।
सरकार के निर्देश साफ हैं कि गौशालाओं में किसी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। पशुओं की चिकित्सा, चारा और देखभाल की व्यवस्था नियमित रूप से सुनिश्चित की जानी चाहिए। बावजूद इसके, डीहिया गांव की इस गौशाला की हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।
इस मामले ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए हैं—
क्या सरकार का पैसा वाकई पशुओं की भलाई में खर्च हो रहा है?
गौशाला में मरणासन्न हालत में मिले इन पशुओं का असली जिम्मेदार कौन है?
ग्रामवासियों का कहना है कि यदि समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो गौशालाओं का मकसद सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाएगा और निर्दोष पशुओं की जानें यूं ही चली जाएंगी।
सरकार को इस पर सख्त कदम उठाने होंगे, अन्यथा गौशाला योजना का उद्देश्य ही विफल माना जाएगा।