काव्य का प्राणाधार सत्य है –प्रो मयंक

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कबीरदास ने काव्य शास्त्र के सिद्धांतों पर रचनाएं नहीं की उन्होंने सधुक्कडी़ ,फक्कडी,देशज, पंचमेल खिचड़ी भाषा को स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर परिवर्तन कारी, क्रांतिकारी सत्य को धार देकर कुरीतियों को दूर किया. कवि की प्रामाणिकता और उपयोगिता सिद्ध की.
आजमगढ़ के कवि और साहित्यकार विश्वकवि गुरु भक्त सिंह भक्त, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, हरिऔध जी, आचार्य चंद्रबली पांडेय और विश्वनाथ लाल शैदा जी के साहित्यिक वर्चस्व की राष्ट्रव्यापी विरासत को सिद्ध करने के लिए रचनात्मक तप के मार्ग पर नेतृत्व करें.
उपरोक्त विचार प्रो प्रभुनाथ सिंह मयंक ने बरदह में लोकायन संस्कृति न्यास द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी में अध्यक्ष के रूप में संबोधित करते हुए व्यक्त किया.
इस अवसर पर लोकायन के प्रबंधक और प्रसिद्ध कवि बालेदीन बेसहारा, राजनाथ ‘राज’,
हास्यकार शैलेन्द्र मोहन राय ‘अटपट’, भोजपुरी के कवि कृष्ण देव ‘घायल’ मऊ, लखनऊ की कवयित्री सुनीता चतुर्वेदी ‘सुधा’, वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ राजभर “नीलम”, गजलकार अनिल कांत राय अंगारा, डिग्री कालेज के प्राचार्य डा. अच्छे‌लाल सरोज,प्रवक्ता रवीन्द्र यादव व अस्मिता सिंह ने काव्य वाचन किया .
संचालन कमला सिंह तरकश ने किया. प्रारम्भ में सरसवती नियति के प्रेरक रूप और सावित्रीबाई फूले को समर्पित रचना का पाठ किया गया.
स्थानीय आयोजक मंडल में चंद्रेज राम,रामलाल यादव,प्रीति सिंह,सत्य प्रकाश राय,राजेश्वर सिंह, जगरनाथ प्रजापति,रामपलट राम, आलोक सिंह आदि रहे

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