बसपा की मजबूती से आ सकते चौंकाने वाले परिणाम

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अम्बेडकरनगर/पांच सीटों पर हुए मतदान ने दलित वोटों पर बसपा की मजबूत पकड़ का अहसास कराया। बेस मतों पर बसपा की इस कब्जेदारी ने कई सीटों पर जीत-हार का नया समीकरण लगभग तय कर दिया है। चुनाव से पहले जिस बसपा को उसके ही गढ़ में अत्यंत कमजोर माना जा रहा था, उसने सभी सीटों पर अपने दमदार प्रदर्शन से अन्य दलों की तमाम उम्मीदों को तार-तार कर दिया है। बसपा का प्रदर्शन दूसरे दलों के लिए कितना नुकसानदायक होगा और बसपा के लिए फायदेमंद, यह तो 10 मार्च को सामने आएगा, लेकिन बसपा के प्रदर्शन ने सबको चौंका जरूर दिया है।बहुजन समाज पार्टी के गढ़ के तौर पर पहचाने जाने वाले अंबेडकरनगर जनपद में हुए मौजूदा विधानसभा चुनाव में बसपा ने फिर से दमदार उपस्थिति का अहसास कराया है। विधानसभा चुनाव की जब घोषणा नहीं हुई थी तो उसके कुछ समय पहले से बसपा की स्थिति अत्यंत कमजोर दिखने लगी थी। ऐसा इसलिए क्योंकि उसके वे तमाम कद्दावर नेता या तो पार्टी छोड़कर चले गए या फिर निकाल दिए गए थे। चुनाव से ठीक पहले तक सभी पांच सीटों पर जिन बसपा नेताओं के इर्द-गिर्द पार्टी की राजनीति केंद्रित रहती थी, वे सभी सपा में शामिल हो गए थे।बसपा के कमजोर हो जाने का आकलन इसलिए भी होने लगा था, क्योंकि पंचायत चुनाव में पहली बार जिला पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव ही पार्टी नहीं लड़ा सकी। ब्लॉक प्रमुखों के चुनाव में भी पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। इन सबके चलते एक सामान्य चर्चा चल होने लगी थी कि विधानसभा चुनाव में बसपा को अपना प्रदर्शन बचाए रख पाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण साबित होगा। पार्टी ने हालांकि इन सब चर्चाओं की परवाह किए बगैर अपनी रणनीति को आगे बढ़ाना जारी रखा।
अंबेडकरनगर में बसपा की स्थिति मजबूत होकर उभरे, इसलिए पार्टी सुप्रीमो मायावती ने मंडल स्तरीय रैली किसी अन्य जनपद में करने की बजाय अंबेडकरनगर जिला मुख्यालय के निकट की। इससे पहले दूसरे दलों से आए नेताओं व मजबूत प्रत्याशी के सहारे बसपा ने सभी सीटों पर नामांकन से पहले ही अपनी धमक का अहसास कराना शुरू कर दिया। नामांकन के बाद चुनाव का दौर आगे बढ़ा तो विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के चलते यह बात सामने आने लगी कि दलित मतों में भी बंटवारा हो सकता है।
बसपा के समर्थक माने जाने वाले कुछ ओबीसी मतों के भी योजनाओं का लाभ पाने के चलते बसपा से दूर जाने की अटकलें लगने लगी थीं। इसे देखते हुए ही अलग-अलग सीटों पर समीकरणों को तैयार किया जाने लगा। हालांकि तीन मार्च को सभी सीटों पर हुए मतदान ने बसपा के प्रति उसके दलित मतों की एकजुटता को सामने ला दिया। छिटपुट तौर पर दलित मतों के इधर-उधर जाने को छोड़ दिया जाए तो पूरी मजबूती के साथ दलित मतदाता हाथी चुनाव निशान के साथ जाते दिखे। बसपा को इस बेस वोट के अलावा कुर्मी, राजभर, निषाद, कुम्हार, मौर्य आदि वर्ग के वोटों का भी एक हिस्सा अलग-अलग सीटों पर मिला है। इन मतों के अलावा बसपा प्रत्याशियों ने सजातीय मतों पर फोकस करने के चलते उसका अतिरिक्त लाभ उठाया है। इससे चुनाव के पहले जो बसपा मैदान से बाहर नजर आ रही थी, वह मतदान के दिन सभी पांच सीटों पर शानदार प्रदर्शन करती नजर आई। बसपा के इस प्रदर्शन ने निश्चित रूप से सीटों के तमाम समीकरण बिगाड़ दिए हैं। ऐसे में चौंकाने वाले चुनाव नतीजे सामने आएं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा।
कहीं और जाएंगे तो भी नहीं होगी गिनती
जलालपुर से बसखारी की तरफ बढ़ने पर चाय की दुकान पर मिले धर्मराज ने कहा कि बाबू हम दलित हैं। हम सिर्फ बहन जी को जानते हैं। पार्टियों का नाम बताने की बजाए धर्मराज ने कहा कि हमने हाथी का समर्थन किया है। यहीं मिले एक और दलित पुन्नवासी ने कहा कि हमने सपा को वोट दिया है। हमारे बेटे ने फोन कर कहा था कि अगर वोट नहीं दिया तो नौकरी की तैयारी छोड़कर घर आ जाएंगे। भूलेपुर में मिले दलित रामबचन ने कहा कि हम अगर किसी और को भी वोट देंगे तो हम बसपा के ही माने जाएंगे। हंसते हुए कहा कि हमने खुलकर बसपा का साथ दिया है। गांव के बाकी लोगों ने भी यही किया है। कटेहरी से मिझौड़ा की तरफ बढ़ने पर साइकिल से जा रहे त्रिलोकी ने कहा कि जब सब लोग गुटबंदी कर रहे हैं तो हम ही बाकी क्यों रहें। हमको भी आवास मिला है, लेकिन हमको बहन जी का भी सम्मान देखना है। अकबरपुर से मालीपुर की तरफ जाते समय कुछ लोगों के साथ बात कर रहे रमेश का कहना था कि हम जाएं तो जाएं कहां। हमारा वोट तो बसपा में ही गिना जाता है। पढ़े-लिखे रमेश ने सवाल किया कि जिले के लिए बसपा से ज्यादा किया भी किसने है

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