सुल्तानपुर /विकासखंड अखंड नगर के मीरपुर प्रतापपुर बसैतिया देव नगर की पावन भूमि पर प्रियदर्शी धम्म राजा सम्राट अशोक का धम्म विजय दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया गया । यह धम्म विजयदशमी का दिन सम्राट अशोक के बौद्ध धम्म ग्रहण करने के उपलक्ष में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। इतिहास बताता है कि अशोक धन के इतने लालची थे कि अपने सभी भाइयों का भी कत्ल कर दिया था। जिसके कारण सम्राट अशोक को चंड अशोक के नाम से भी जाना जाता था। सम्राट अशोक ने अपने जिस सौतेले भाई सुसीम को युद्ध में मार दिया था , उसी सुसीम के पुत्र निग्रोध कुमार से बौद्ध धर्म की सामणेर दीक्षा ली थी ।निग्रोध सामणेर एक दिन हाथ में भिक्षा पात्र लिए भिक्षाटन के उद्देश्य से शांत भाव से सम्राट अशोक के महल के सामने से गुजर रहे थे। उस समय अशोक खिड़की के पास बैठे महामार्ग पर नजर जमाए थे। उनका मन अशांत था, और शांति की खोज में थे। उन्होंने शांत भाव से चले जा रहे उस श्रवण को देखा। सम्राट के हृदय में उनके प्रति प्रेम उमड़ पड़ा। अशोक के मेघाछन्न हृदय पर मानो प्रकाश की बिजली कौंध गई ।उन्होंने उस श्रवण को बुलाया और उसे उचित आसन दिया। उस सामणेर की वाणी को सुनकर सम्राट अशोक के हृदय में परिवर्तन हुआ और उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण का संकल्प लिया। सम्राट अशोक ने अपने इतिहास प्रसिद्ध है गुरु महास्थविर मोग्गलि पुत्त तिष्य से धम्मदीक्षा ग्रहण किया। उस दिन की यादगार में मनाया जाने वाला यह त्योहार विजयदशमी के नाम से जाना जाता है। जब 14 अक्टूबर 1956 में बाबा साहब ने बौद्ध धम्म को ग्रहण करके लोगों को बौद्ध धम्म ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया ।और बौद्ध धम्म से भटक ना जाएं इसलिए 22 प्रतिज्ञाएं दिया था।तब से इस पर्व को अशोक धम्म विजयदशमी के नाम से जाना जाता है ।इस धम्म दिवस पर तमाम संगठनों के लोग मौजूद रहे। आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सहित सपा प्रत्याशी भगेलू राम जी भी उपस्थित रहे ।इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भंते स्वरूपानंद जी को बनाया गया था । किंतु अपरिहार्य कारणों से उनके न आने के कारण दूसरे भंते स्वर्ण रत्न को मुख्य अतिथि बनाया गया ।तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में अंतरराष्ट्रीय बुद्ध विहार गोठाव आजमगढ़ के आचार्य चंद्रजीत गौतम जी रहे। आचार्य चंद्रजीत गौतम और भंते स्वर्ण रत्न ने अपने ज्ञानवर्धक और करुणामई वाणी से लोगों को बौद्ध धम्म के प्रति जागरूक व श्रद्धा पैदा करने का तथा भगवान बुद्ध के धम्म को मानकर उस पर चलने का और अपने जीवन को सुखी बनाने का उपदेश दिया ।लोग सुबह से बैठकर शाम तक श्रद्धा पूर्वक कार्यक्रम को सुनते रहे। क्योंकि इस धम्म दिवस के अवसर पर अशोक धम्म विजयदशमी के नाम से मेला भी लगता है अतः लोगों ने धम्म के साथ मेले का भी आनंद लिया।
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