खेतासराय दोहरे हत्याकांड के एक माह बाद मिलने पहुँचे सांसद श्याम सिंह यादव

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शाहगंज/जौनपुर

खेतासराय कस्बा में एक माह पूर्व दो सगे भाइयों की निर्मम हत्या कर दिए जाने के बाद तमाम सियासी पार्टियों के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता और सगे-सम्बन्धियों ने पीड़ित परिवार के घर पहुँचकर शोक संवेदना व्यक्त करते हुए हर तरह की मदद करने का आश्वासन दिया तो कुछ लोगों अपने सामर्थ्य अनुसार पीड़ित परिवार का आँसू पोछने का काम किया। लोगों ने जाति, धर्म, मज़हब से ऊपर उठकर पीड़ित परिवारों की मदद की। भारतीय संस्कृति में आज भी सदियों से यह प्रथा सदियों से चली आ रही है कि किसी के घर किसी कोई अनहोनी घटना होने पर शोक संवेदना व्यक्त करने के लिए लोग जाति, धर्म, मज़हब से ऊपर उठकर मानवता के लिए शोक संवेदना व्यक्त करते है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनप्रतिनिधि अपने – अपने क्षेत्रों में पहुँचकर पीड़ित को सांत्वना देते है और एक जनप्रतिनिधि की यह जिम्मेदारी भी होती है कि वह जनता के हर दुख-सुख में शामिल हो। एक जनप्रतिनिधि की भी यह जिम्मेदारी होती है की वह जनता के हर सुख-दुःख में शामिल हो। एक माह पूर्व खेतासराय में दो सगे भाइयों की निर्मम हत्या होने के बाद तमाम पार्टियों के जनप्रतिनिधि ने अपने सुविधानुसार पहुँचकर पीड़ित परिवार के साथ दुःख में ढांढस बाधने का काम किया। आर्थिक मदद भी की एवं सरकार से मदद दिलाने व न्याय दिलाने का विश्वास दिलाया। एक माह बाद जौनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव भी गुरुवार की देर शाम खेतासराय हत्याकांड के पीड़ित परिवार से मिलने पहुँचे तो सिर्फ पीड़ित परिवार को सिर्फ आश्वासन की घुट्टी पिलाया। सांसद ने सरकार में ना होने का रोना रोते हुए कहा कि मैं आप की बात सरकार तक पहुँचाने की कोशिश करूँगा तो सवाल उठता है की क्या सांसद के क्षेत्र की जनता न्याय की आस लगाना छोड़ दें एक जनप्रतिनिधि की ज़ुबाँ से ये बात शोभा नहीं देती। जब एक जनप्रतिनिधि ही विपक्ष का बहना बना कर न्याय मिलने की उम्मीद छोड़ दें तो आम जनता का क्या होगा? जिसको लेकर कस्बा में तमाम तरह की चर्चाएं व्याप्त है लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतने बड़े पद पर होने के बाद खुद को जनता सेवक बताते है और गरीबों के हर दुःख-सुख को बाटने का वीणा उठाने के लिए जनप्रतिनिधियों को निर्देशित करते है। एक जनप्रतिनिधि का एक माह बाद पीड़ित परिवार से मिलने जाना कही चुनावी स्टैंड तो नहीं या फिर जो झूठी हमदर्दी के सहारे 2024 में नैया पार लगाने ताना-बाना तो नहीं तो बुना जा रहा है। सांसद को पीड़ित परिवार को इतने दिनों के बाद याद क्यों और कैसे आयी। जबकि सत्ताधारी पक्ष या विपक्ष के नेता रहे हो सभी ने लगभग तमाम लोगों ने पीड़ित परिवार का आँसू पोछने का काम किया है। सच तो यह है की लोकतंत्र में जनता को उम्मीदें अपने सांसद, विधायक व जनप्रतिनिधियों से जुड़ी हुई होती है। एक माह बाद कोई सांसद पीड़ित परिवार से मिलने आये और ऊपर से आश्वसन की घुट्टी पिलाकर चला जाये तो उसके लिए यह कहावत चरितार्थ होती है कि नाम बड़े और दर्शन छोटे। सांसद के देर से आने के बाबत जब पूछा गया तो उनके साथ आएं बसपा के पूर्व प्रत्याशी सलीम खान ने कहा शीतकालीन सत्र चलने के वजह से आने में देरी हुई है। विदित हो कि शीतकालीन सत्र सम्भवतः 22 दिसम्बर को ही समाप्त हो गया था। उसके बाद एक पखवारे बाद पहुँचे से सांसद ने अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री कर ली लेकिन उनका आना हों क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। लोग दबी जुबान से यह कहते हुए पाएं गए कि कहने को तो जनप्रतिनिधि खुद को जनता का सेवक बताता है लेकिन पीड़ित परिवार का दुखों का पहाड़ टूट जाने की खबर जनप्रतिनिधि को न होना इस बात को जाहिर करता है कि इस तरह जनप्रतिनिधि को जनता की कोई फिक्र नहीं ऐसे लोग वोट के समय फिर जनता से हमदर्दी का रोना रोते है और जनता के वोटों से जनप्रतिनिधि बनकर जनता को ही भूल जाते है। ज्ञात हो कि 28 नवम्बर को खेतासराय कस्बा बभनौटी मोहल्ला निवासी फूलचन्द्र प्रजापति के दो पुत्र अजय और अंकित प्रजापति खेतासराय – खुटहन मार्ग पर चाऊमीन की दुकान पर चाकू मारकर निर्मम हत्या कर दी गई थी। इस दिल दहला देने वाली घटना से हर किसी की आँखें नम हो गई और शोक संवेदना व्यक्त करने वालों का तांता लगा रहा। परिवार के यही दोनों बेटे किसी तरह परिवार चला रहे थे। लेकिन अब फूलचन्द्र का कुनबा वीरान हो गया। अब ऐसे में सवाल यह उठता है फूलचन्द्र के बढ़ापे की लाठी कौन बनेगा और उनका जीवकोपार्जन कैसे चलेगा।

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