बुद्धि जीवी: बुद्धि का बहुत अधिक प्रयोग करके अपनी रोटी कमाता है। ऐसे लोगों को धन का लालच देकर कहीं भी बुलाया जा सकता है। ये लोग घर परिवार से बहुत दूर भी चले जाते हैं। केवल धन कमाना और सबसे ऊंचे रहना चाहते हैं। इनका भी शोषण ही होता है। इनको कभी भी निर्णय लेने का अधिकार नहीं मिलता। परजीवी लोग इनसे कुविज्ञान का विकास करवाते हैं जिसका उपयोग परजीवी सभी को ठगने के लिए करते हैं। ये लोग बड़ा संगठन नहीं बनाते क्योंकि इनको अपने बुद्धि के कमाई पर सदैव भरोसा/गर्व रहता है। इनकी कमाई इनके खर्च से सदैव ज्यादा होती हैं।
श्रमजीवी: ऐसे लोग श्रम का बहुतायत प्रयोग करके पैसा कमाते हैं। परजीवी लोग इनके श्रम को नीच बता कर इनके कार्यों की कम कीमत लगा कर इनका शोषण करते हैं। ये लोग भी धन के लालची होते हैं और अपने श्रम को बेचते हैं परंतु उचित कीमत नहीं पाते और ठगे जाते हैं। ये लोग भी बड़ा संगठन नही बनाते क्योंकि इनको भी अपने श्रम शक्ति की कमाई पर सदैव भरोसा/गर्व रहता है। इनकी भी कमाई इनके खर्च से सदैव ज्यादा होती है।
परजीवी: ऐसे लोगों के न तो अच्छी बुद्धि होती है और न ही श्रम शक्ति। ऐसे लोगों को केवल ठगी आती है। ये लोग क्षद्म राष्ट्रवाद, परोपकार, दान, पुण्य, काल्पनिक शक्तियों का भय, अति महापुरुष वाद का सहारा लेकर ठगी करते हैं। ये लोग धन शक्ति को बहुत उच्च स्तर पर बढ़ा लेते हैं और इसके प्रयोग से बुद्धिजीवियों और श्रमजीवियों को खरीदते हैं और उसी से उनका ही शोषण करते हैं। इनका लक्ष्य कुविज्ञान का विकास करवाकर लोगो के संसाधनों पर अपना वर्चस्व बनाए रखना हैं। ये लोग प्रकृति से बहुत दूर रहते हैं। तदानुसार इनका अंत होता है। ऐसे लोग प्रायः दिखते नहीं हैं। इनके पास ठगने की कुविद्या होती है। श्रम जीवियों और बुद्धिजीवियों का शोषण करते हैं। ये प्रायः अविवाहित होते हैं या विवाहित होने का ढोंग करते हैं। इनकी कोई घर गृहस्थी नहीं होती। क्योंकि परायों की संपदा को अपना समझते हैं और तदानुसार उसके उपभोग करते हैं। पर स्त्री गमन और गैर जिम्मेदारी इनके गुण होते हैं। ये लोग सदैव गिरोह बनाकर रहते हैं क्योंकि ठगी का कार्य अकेले संभव ही नहीं है।
आजीवी : ऐसे लोग अपने संसाधनों धन, बल, बुद्धि, समय और संगठन शक्ति के उपयोग से ही अपनी घरगृहस्थी चलाते हैं। ऐसे लोग दूसरों की कमाई के उपयोग में पीड़ा का अनुभव करते हैं। ऐसे लोग अपने और अपने परिवार में खुशी, सुख और समृद्धि (KSS) को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं। ऐसे लोग घर परिवार छोड़कर नहीं रह सकते। ऐसे लोग प्रकृति के ज्यादा करीब होते हैं। इनके संसाधनों को कोई भी ठग नही सकता। ये लोग परोपकार, दान, पुण्य, पुनर्जन्म, अंधविश्वास, पाखंड, अति महापुरुष वाद के जाल से सदैव दूर रहते हैं परंतु आपस में सहयोग करके रहते हैं। इनको अच्छे से पता होता है की इनकी कमाई परजीवी लोग गिरोह बनाकर ठग रहे हैं अतः इनसे बचने के लिए ये लोग बड़े संगठन बनाने का प्रयास करते हैं। आजीवी को ही आजीवक कहते हैं।
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अध्यक्ष,
आजीवक कल्याण एवं विकास अनुसंधान ट्रस्ट (AWDRT)