सद्दरपुर। अलीगंज थाने के अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए न्यायालय का आदेश कोई मायने नहीं रखता है, वह भी उस समय जब मामला दुराचार जैसी संगीन घटना से जुड़ा हो। न्यायालय के आदेश के दो सप्ताह बाद अलीगंज पुलिस ने अभियोग पंजीकृत किया है।
अलीगंज थाना क्षेत्र के एक गांव की एक महिला बीते 10 जून को अपने परिजनों के साथ छत पर सो रही थी। रात्रि करीब लघुशंका के लिए नीचे उतरी थी। आरोप है कि जब वह वापस छत पर जाने लगी कि घर के सामने रहने वाला नौशाद आलम पुत्र इसरार अहमद ने उसे दबोच लिया और मुंह दबाकर जान से मारने की धमकी देते हुए दुराचार किया। हल्ला गुहार पर जब लोग दौड़े तो पीड़िता के पति ने दुराचार करने वाले युवक को दबोच लिया लेकिन वह किसी तरह छुड़ाकर भाग निकला। पीड़िता ने 11 जून को थाने में प्रार्थनापत्र देकर कार्रवाई की मांग की, लेकिन पुलिस ने कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की, बल्कि विपक्षी के साथ सुलह करने के लिए दबाव बनाया गया। तब पीड़िता ने 26 जून को पुलिस अधीक्षक को घटना की सूचना रजिस्टर्ड डाक से भेजकर न्याय की गुहार लगायी, परन्तु यहां से भी पीड़िता को निराशा ही हाथ लगी। थक हारकर उसने न्यायालय की शरण ली, जिस पर न्यायिक मजिस्ट्रेट सौम्या दिर्वेदी ने बीते 20 जुलाई को अलीगंज थानाध्यक्ष को अपराध पंजीकृत करने का आदेश दिया था। अलीगंज पुलिस ने न्यायालय के आदेश के दो सप्ताह बाद शुक्रवार को येन-केन प्रकारेण अपराध पंजीकृत किया। थानाध्यक्ष नागेन्द्र कुमार सरोज ने बताया कि वह अभी कल ही कार्यभार ग्रहण किये हैं। उन्होंने कहा कि न्यायालय के आदेश का तत्काल पालन करते हुए अपराध पंजीकृत किया गया है।
दुराचार जैसे संगीन मामलों में मुकदमा नहीं दर्ज करती अलीगंज पुलिस
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