मेहनगर में छठ पूजा की तैयारी को लेकर उपजिलाधिकारी ने किया घाटों का निरक्षण

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मेहनगर (आजमगढ़) -कस्बे सहित ग्रामीण क्षेत्र में छठ पूजा के मद्देनजर रखते हुए उपजिलाधिकारी संत रंजन ने देवित, अहियाई, भोरमपुर, लखराव पोखरा, निरंजन पोखरा, प्रभा पोखरा, सोरहे बाबा, हरिहरपुर, कुसमूलिया, गद्दीपुर , तिलसणा, रायपुर , दौलतपुर, खुटवा, गौरा, बीरभानपुर ,मेहनगर के पोखरों का निरीक्षण किया गया। इसी क्रम में नगर अध्यक्ष अशोक चौहान ने कुछ जगह पर साफ सफाई भी करवाया और पोखरे के समीप जगह जगह के लिए प्रकाश व्यवस्था बैरिकेडिंग पोखरे के लिए नाय की व्यवस्था गोताखोर रस्सी की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी ली वही गांव के प्रधानों ने भी अपने घाटों की जिम्मेदारी ली इस क्रम में थाना प्रभारी बसन्त लाल ने बताया कि पुलिसकर्मियों की हर घाट पर तैनाती रहेगी जो अपनी ड्यूटी बखूबी निभाएंगे उपजिलाधिकारी ने बताया कि यह छठ पूजा उत्तर प्रदेश और खासकर बिहार में छठ का विशेष महत्व है। छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है। नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक मास में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को ‘चैती छठ’ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को ‘कार्तिकी छठ’ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है। इसका एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है। जिसको माता सीता ने भी की थी। सूर्यदेव की पूजा

छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया ।और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इससे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत काल से हुई थी छठ पर्व की शुरुआत।
हिंदू मान्यता के मुताबिक, कथा प्रचलित है। कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।

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