kemassnews:आज़मगढ़ स्कूल जाने की उम्र बोझा ढो रहा बचपन ईट भट्ठा मालिक कराते हैं छोटे बच्चों से काम आज़मगढ़ कोई भी व्यक्ति खुद उच्च शिक्षा लेकर समाज को नहीं बदल सकता है .बल्कि अपनी शिक्षा के जरिए समाज को शिक्षित करने की सोच से सामाजिक बदलाव लाया जा सकता है इसी सोच के आधार पर बाल श्रमिकों की जिंदगी सुधारने में और उनके उज्जवल भविष्य के लिए केंद्र सरकार ने स्कूल चलो अभियान शुरू किया था लेकिन यह महज एक स्लोगन बनकर रह गया है योगी सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री ने 1 फरवरी को शारदा अभियान को हरी झंडी दिखाई थी .तब जिम्मेदारों ने दावा किया था कि 28 दिन चलने वाले इस अभियान में मलिन बस्तियों झुग्गी झोपड़ियों ईट भट्ठों फुटपाथ ओं रेलवे और बस स्टेशनों पर निरक्षर बच्चों का प्राथमिक विद्यालयों में पंजीकरण कराकर उन्हें हर हाल में स्कूल भेजना सुनिश्चित किया जाएगा .अभियान के दौरान स्कूल से वंचित बच्चियों पर खंड विकास अधिकारियों जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी जिला अधिकारी अथवा उनके दूतों की खास नजर रहेगी जिससे दो कुलों को संवारने वाली बेटियों को शिक्षित बनाकर देश के भविष्य को सुनिश्चित किया जा सके. शासकीय घोषणा अख़बारों में छपी. और विभाग को खूब वाहवाही मिली .लेकिन हकीकत इसके एकदम उलट है .जिम्मेदारों की खाओ कमाओ नीतियों के चलते अकेले आजमगढ़ जिले में सैकड़ों नन्हे-मुन्ने 2 जून की रोटी चलाने के लिए स्कूल के घंटों में ईंट भट्टे पर काम कर रहे हैं .जिन हालातों में जिले के स्कूल चलो अभियान चलाया जा रहा है .और उनके बीच नन्हे-मुन्ने पाठशाला से वंचित रह कर ईट भट्ठे किराने की दुकान व होटल पर काम कर रहे हैं .हालात अगर यही रहे तो शिक्षा के क्षेत्र में आजमगढ़ के नन्हे-मुन्ने ऐसे ही इस भट्ठों पर काम करने को मजबूर होते रहेंगे .