मऊ –
भारतीय संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता और बराबरी की नागरिकता का अधिकार देता है सरकारों को इसके लिए बाध्य करता है कि वो किसी भी समुदाय के साथ किसी भी प्रकार का धार्मिक भेदभाव का व्यवहार ना करे ये बातें आज जमियत-ए-उलेमा मऊ ने जिलाधिकारी मऊ के माध्यम से राष्ट्रपति को सम्बोधित ज्ञापन देने में कहीं।
जमियत-ए-उलेमा मऊ अपने दिए गए पत्रक में मांग किया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (सीएए) जैसे काले कानून को सरकार तत्काल वापस ले या फिर नये अधिनियम में हिंदू, सीख, इसाई, पारसी, बोध और जैन शब्द के साथ मुसलमान शब्द भी जोड़ा जाए या सबको हटाकर सिर्फ अल्पसंख्यक शब्द जोड़ दिया जाए और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर जैसी योजना की भारत में कोई आवश्यकता नहीं है इसलिए असम के अनुभव से सरकार एनआरसी कराने की अपनी योजना को निरस्त कर दे।
केंद्र सरकार की कैबिनेट द्वारा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) बनाने के लिए जो प्रस्ताव पारित किया गया है उससे भी लोगों में भय और भ्रम की स्थिति है इसलिए उसमें से भी माता और पिता के जन्म स्थान के विवरण के कालम को समाप्त कर पुर्वानुसार गणना कराई जाए।
नये अधिनियम में असम, मेघालय, मिजोरम, और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों को जोड़ने के साथ ही साथ नेपाल, भूटान, श्रीलंका और मालदीप जैसे पड़ोसी देशों से आने वाले लोगों को भी इस अधिनियम का लाभ देने का प्रावधान किया जाए
ज्ञापन देने वालों में विशेष रूप से जमियत-ए-उलेमा मऊ के जिलाध्यक्ष मौलाना खुर्शीद अहमद मिफ्ताही, मौलाना मु फारूक मज़हरी, मौलाना इफ्तिखार अहमद मिफ्ताही,मौलाना कारी मसीहुर्रहमान कासमी,मुफ्ती अनवर अली, मौलाना अब्दुलहई मिफ्ताही, मौलाना अब्दुल अलीम नदवी, मौलाना फय्याज़ फैसल, कारी मुख्तार अहमद, डाक्टर अल्ताफ प्रधान, अताउल्ला मेंबर, मौलाना वहीदुलहसन, मौलाना इस्लामुद्दीन, मौलाना अरशद जमाल, मुफ्ती अब्दुल्ला नोमानी और होज़ैफा दानियाल आदि उपस्थित रहे।