एक बड़े राजनीतिक प्रयोग से चूक गए अखिलेश! अगर करते ऐसा तो सपा रच सकती थी इतिहास

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आजमगढ़:-उत्तर प्रदेश की राजनीति को बहुत करीब से समझने वाले राजनैतिक विश्लेषक ओपी मिश्रा

आजमगढ़ समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। इसलिए अखिलेश यादव अपनी परंपरागत सीट को खोना नहीं चाहते थे। शायद यही वजह है कि उन्होंने अंतिम समय में अपने ही परिवार के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को लोकसभा का प्रत्याशी बनाया है..
नामांकन करने पहुंचे धर्मेंद्र यादव

उत्तर प्रदेश में होने वाले लोकसभा उपचुनाव में सबसे ज्यादा निगाहें आजमगढ़ लोकसभा सीट पर लगी हुई हैं। इस सीट पर नामांकन खत्म होने के एक रोज पहले ही अखिलेश यादव ने अपने भाई धर्मेंद्र यादव को इस सीट से प्रत्याशी बनाया है। जबकि इससे पहले चर्चा प्रमुख दलित नेता बलिहारी बाबू के बेटे सुशील आनंद को लेकर लगाई जा रही थी। लेकिन एन मौके पर सुशील को टिकट नहीं मिला। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव के पास एक बहुत बड़ा मौका दलितों के बड़े नेता पर दांव लगाकर एक बड़ा राजनीतिक प्रयोग करने का था। खासकर तब जब मायावती लगातार समाजवादी पार्टी के कोर वोट बैंक मुस्लिमों की पैरवी कर बसपा को उनका हितैषी बताने की बात करती रहती हैं। शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को टिकट देकर एक बार फिर मायावती ने आजमगढ़ में मुस्लिम कार्ड खेलने की जोर आजमाइश की है। लेकिन इस बार का आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव उतना आसान नहीं है जितना कि 2019 के चुनाव में था।

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