गिले शिकवे भुलाकर एक दूसरे को गले लगाने का है पर्व

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होली: काशी मथुरा और अयोध्या से जुड़ी मान्यताएं

अमीर -गरीब की खाई को पाटने वाला‌ है यह पर्व 

सनातन धर्म में हर पर पर्व को देवी- देवताओं से जोड़कर इसलिए रखा गया है की लोग नैतिक आचरण का पालन कर कर उसे अपने जीवन में उतारें। साथ ही साथ अपने तन मन को स्वच्छ और आनंदित रखें।

होली का त्यौहार हिंदी के फाल्गुन माह में वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है, लोग यह भी कहते हैं कि इस पर्व वसंत ऋतु का आगमन भी होता है, क्योंकि इस समय पेड़ पौधों में नई पत्तियां, रंग बिरंगे फूलों और से वातावरण भी रंगीन हो जाता है। खेतों में सरसों, गेहूँ की बालियाँ, बाग-बगीचों में फूलों और पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब के सब उल्लास और उत्साह में होते हैं।

आज हम बात कर रहे हैं होली की।

काशी की होली

काशी में होली, बनारस, शिव,मस्ती,भंग, तरंग और ठण्डाई से जुड़ी हैं। इन्हें इससे अलग नहीं जा सकता। ये उतना ही सच है जितना ‘ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या।’ बनारस की होली के आगे सब मिथ्या लगता है।आज भी लगता है कि असली होली उन शहरों में हुआ करती थी जिन्हें हम पीछे छोड़ आए हैं। ऐसी रंग और उमंग की होली जहॉ सब इकट्ठा होते,खुशियों के रंग बंटते, जहॉ बाबा भी देवर लगते और होली का साहित्य, जिसमें समाज राजनीति और रिश्ते पर तीखी चोट होती।दुनिया जहान के अपने ठेंगे पर रखते। इस साहित्य की इतनी डिमांड होती है कि लोग जीराक्स कराके एक दूसरे को बांटते हैं और चोरी-चोरी पढ़कर आनंद उठाते हैं। हालांकि यह वह नहीं करते उन्हें बसंत का स्वभाव यह कराता है। बनारस वाले कहीं भी रहे सब कुछ बदल जाए लेकिन होली और गाली संगत का संस्कार कभी नहीं बदलता।
ऋग्वेद भी कहता है “संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनासि जानताम।” अर्थात हम सब एक साथ चलें। आपस मे संवाद करें।
एक दूसरे के मनो को जानते चलें। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी, रंगभरी एकादशी होती है। कथा है कि शिवरात्रि पर विवाह के बाद भगवान शिव ससुराल में ही रह गए थे। रंगभरी को उनका गौना होता है। गौरी के साथ वे अपने घर लौटते है और अपने दाम्पत्य जीवन की शुरूआत होली खेल कर करते है। इसीलिए काशी विश्वनाथ मंदिर में रंगभरी से ही बाबा का होली कार्यक्रम शुरू होता है।
उस रोज़ मंदिर में होली होती है। दूसरे रोज़ महाश्मशान में चिता भस्म के साथ होली खेली जाती है। शिव यहीं विराजते हैं। सो उत्सव के लिए इससे अधिक समीचीन दूसरा मौका कहॉं होगा! वैसे भी होली समाज की जड़ता और ठहराव को तोड़ने का त्योहार है। उदास मनुष्य को गतिमान करने के लिए राग और रंग जरूरी है—होली में दोनों हैं। यह सामूहिक उल्लास का त्योहार है। परंपरागत और समृद्ध समाज ही होली खेल और खिला सकता है। रूखे,बनावटी आभिजात्य को ओढ़ने वाला समाज और सांस्कृतिक लिहाज से दरिद्र व्यक्ति होली नहीं खेल सकता। वह इस आनंद का भागी नहीं बन सकता।

मथुरा की होली

मथुरा में होली का त्योहार, बरसाना की ‘लट्ठमार होली’ से जुड़ी है, वह यह है कि भगवान कृष्ण अपने दोस्तों के साथ राधा और गोपियों को चिढ़ाते और परेशान करते थे। इसलिए, प्रतिशोध में, उन्होंने श्रीकृष्ण को भगाने के लिए लाठियों से मारना शुरू कर दिया।

अयोध्या की होली

होली खेले रघुवीरा अवध में, होली खेले रघुवीरा।
होली रंगों का त्योहार है. अवध की होली बहुत खास होती है. यहां की होली में मर्यादा, संस्कृति और गंगा-जमुनी तहजीब के साथ लखनऊ की नफासत की झलक मिलती है। आज भी लखनऊ का अभिजात वर्ग में होली धूमधाम से बनता है लखनऊ का कोई भी मोहल्ला हो या पास कॉलोनी सभी में लोग होली अपने अंदाज में मनाते हैं। यह पर्व उच्च नीच अमीर गरीब सबकी खाई को पाटता है। लोग गिला, शिकवा भूलकर एक दूसरे को गले से लगाते हैं और उन्हें बधाई और शुभकामना देते हैं।
देश के जाने-माने इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट बताते हैं कि नवाब आसफुद्दौला 1775 से लेकर 1797 तक अवध के नवाब रहे. नवाब आसफुद्दौला को होली खेलने का बहुत शौक था.‌ नवाब सआदत अली खान ने भी खूब होली खेली है. यही नहीं अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह भी खूब धूमधाम से होली पर रंग खेलते थे। यह नवाब चांदी की बाल्टी में रंग होते थे और चांदी की पिचकारी से लोगों के ऊपर रंग डालते थे। अयोध्या अयोध्या में रघुवीर में होली खेल कर कितना प्रचलित कर दिया था कि मुगल शासक भी उसे तोड़ नहीं पाए और वह खुद ही उसी रंग में रंग गए।

और अब जोगीरा सा रा रा…

जोगी का अर्थ है जिसे संसार से कोई लेना-देना नहीं है l ऐसे जोगी को होली के अवसर पर छेड़ा जाता है कि संसार छोड़ने से पहले यहां के रंग में खुद को रंग लो l

पानी की फुहारों जैसा सांसारिक जीवन है इसमें जोगी स्वरुप हर व्यक्ति को पानी और रंग की फुहारों से आमंत्रित किया जाता है, इस मस्ती में रंगने पर जिस प्रकार के छोटे-छोटे रंगीले वाक्य बन जाते हैं l इसको कई कवियों ने अपनी रचना में विभिन्न तरह से दर्शाया है। कुछ फिल्मों ने तो इसे नायक और नायिकाओं के अंदर की मादकता को अपनी रचनाओं में दर्शाया है। जैसे रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे…। भोजपुरी फिल्मों ने तो सारी हद और मर्यादाएं तोड़ दी। खैर आनंद का पर्व है खुशी से मनाइए। किसी को कष्ट मत दीजिए।

मान्यता यह भी है

होलिका भस्म घर पर रखने से व्यक्ति को चमत्कारिक लाभ मिलता है। भूत प्रेत बाधा ,ग्रह बाधा दूर होती है, होली जलने के बाद उसकी राख जिसे भस्म कहते हैं का विशेष महत्व होता है, होलिका भस्म अवश्य घर पर लाकर रखें, होलिका दहन के समय जो पूजा होती है वह होलिका की होती है प्रहलाद कि नहीं, होली का दैत्यराज हिरण्यकश्यप की बहन थी और उसने प्रहलाद को मारने की कोशिश की थी फिर भी उसकी पूजा होती है।

डॉ सुनील कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर
(मीडिया प्रभारी)
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर

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