उर्दू अदब के विश्व विख्यात शायर मुनव्वर राणा नहीं रहे लखनऊ के ऐशबाग कब्रिस्तान में किए गए सुपुर्द ए खाक

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जलालपुर/ अम्बेडकरनगर
मुनव्वर राणा का 71 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से 14 जनवरी 2024 की देर रात निधन हो गयाl मुनव्वर राणा काफी समय से बीमार चल रहे थे और संजय गांधी पीजीआई लखनऊ में भर्ती थेl सोमवार को उन्हें लखनऊ के ऐशबाग़ कब्रिस्तान में सुपुर्द ए ख़ाक किए गए lउर्दू अदब के विश्व विख्यात शायर मुनव्वर राणा का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में हुआ थाl इनका मूल नाम सैयद मुनव्वर अली था लेकिन साहित्य जगत में मुनव्वर राणा के नाम से प्रसिद्ध हुए l बता दें कि देश के विभाजन का प्रभाव उनके परिवार पर भी पड़ा l उनके कई रिश्तेदार बंटवारे के समय मुल्क छोड़कर पाकिस्तान चले गए थेl मुनव्वर राणा का शुरुआती जीवन बचपन से लेकर जवानी के कुछ वर्ष कोलकाता में ही बीते l कोलकाता से ही बीकॉम की पढ़ाई के साथ-साथ उनका साहित्य के क्षेत्र में भी पदार्पण हो गया l” *अब्बास अली खान बेखुद”* और *वाली आसी* का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा इसके बाद उन्होंने अपनी शायरी के जुनून से भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में अपनी एक अलग पहचान स्थापित कीl मुनव्वर राणा अपनी रचनाओं में मुख्य रूप से हिंदी और अवधी शब्दों का प्रयोग किया करते थेl उनकी ज्यादातर शायरियों में प्रेम का केंद्र बिंदु *माँ* होता था l उर्दू अदब को अपनी अनुपम रचनाओं के माध्यम से रोशन करने वाले मुनव्वर राणा अपने खास अंदाज ए बयां के लिए जाने जाते हैंl यही कारण है कि भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में उनके लाखों करोड़ों मुरीद है l मुनव्वर राणा की *मां* नज़्म उर्दू अदब में अपना एक विशिष्ट स्थान रखती हैl मुनव्वर राणा को उर्दू यादव में विशेष योगदान देने के लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया वर्ष 2012 में *शहीद शोध संस्थान* उत्तर प्रदेश की ओर से *माटी रत्न सम्मान*, वर्ष 2014 में मुनव्वर राणा की रचना *शहदाबा* को *साहित्य अकादमी पुरस्कार* और खुसरो , मीर तक़ी मीर, गालिब, डॉ जाकिर हुसैन, सरस्वती समाज पुरस्कार से भी सम्मानित किया गयाl मुनव्वर राणा की रचनाओं में विशेष कर *माँ* पर लिखी नज़्म के लिए हमेशा याद किए जाते रहेंगेl मुनव्वर राणा की रचनाओं में विशेष कर माँ पर लिखी गई नज़्म इस प्रकार है..
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
यहां से जाने वाला लौटकर कोई नहीं आया
मैं रोता रह गया लेकिन ना वापस जाकर माँ आई
अधूरे रास्ते से लौटना अच्छा नहीं होता
बुलाने के लिए दुनिया भी आई तो कहां आई
किसी को गांव से प्रदेश ले जाएगी फिर शायद
उड़ती रेलगाड़ी ढेर सारा फिर धुआं आई
मेरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
तो फिर इन बदनसीबों को न क्यों उर्दू ज़बॉ आई
कफ़स में मौसमों का कोई अंदाज़ा नहीं होता
खुदा जाने बहार आई चमन में या खिज़ा आई

खलीक अहमद की रिपोर्ट

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